कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है?

 


कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है?

हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुण्डलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ है। जब कुण्डलिनी शक्ति ऊपर की ओर गति करती है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र यानि सहस्रार तक पहुंचना होता है, लेकिन यदि व्यक्ति संयम और ध्यान छोड़ देता है तो यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर अवस्थित हो सकता है।

जब कुण्डलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है। साधना की तीव्रता, शक्ति की गहनता और साधक के कर्म क्षय के अनुसार, कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर स्थित हो जाती है। ध्यान साधना की निरंतरता से कुंडलिनी शक्ति के ऊर्ध्व गमन का यह क्रम निरंतर चलता रहता है। कुण्डलिनी शक्ति जिस चक्र पर जाकर रुकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक उर्जा को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वस्थ और स्वच्छ कर देती है।
कुण्डलिनी शक्ति के जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर होता जाता है और उसका रूझान आध्यात्म और ईश्वर के रहस्यों की ओर होने लगता है। कुण्डलिनी जागरण से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ जाती है और व्यक्ति खुद में शक्ति, आनंद और अनंत सामर्थ्य का अनुभव करने लगता है।

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