क्या ईश्वर धार्मिक लोगों की परीक्षा लेता है?



क्या ईश्वर धार्मिक लोगों की परीक्षा लेता है?


समाज में लोगों के बीच एक धारणा बनी चली आ रही है कि जब से वह साधना करने लगे हैं या अध्यात्म की राह पर चलने लगे हैं, तब से उनके जीवन में ज्यादा कष्ट और दुःख उनको मिलने लगे हैं। वास्तव में यह सब हमारे मन की भ्रांतियां हैं, और कुछ भी नहीं। हां, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सदमार्ग या ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलने वाले लोगों की परीक्षा ईश्वर जरूर लेता है। लेकिन उनको ज्यादा कष्ट मिलने लगा है यह हमारे मन का मात्र विकार है। क्योंकि हमारे जीवन में जो कष्ट-दुःख हमें मिलते हैं, वे सब हमारे संचित कर्मों के आधार पर मिलते हैं। जब हम ईश्वर की शरण में जाते हैं या साधना-अध्यात्म के मार्ग से जुड़ते हैं तो हम अपने संचित कर्मों का नाश करते हैं। जिससे परिणाम स्वरूप हमको जीवन में जहां अत्यधिक आर्थिक व शारीरिक हानि मिलने वाली होती है, उसे हमारे द्वारा की जाने वाली साधना द्वारा उसका स्वरूप छोटा हो जाता है। 

क्योंकि वो कर्म हमने अनंत से जुड़े बगैर कर लिए थे। जिसके कारण हमने कर्मों की परतें अपने चारों ओर पैदाकर ली थीं। उन कर्मों में बंधकर जीवन में कष्ट और दुःख आना शुरू हो गया था। जब हम अनंत से जुड़ जाते हैं, शिवयोग की स्थिति में आते हैं, तो एक-एक करके वह कर्मों की परतों का नाश होने लगता है। जब ये कर्मों की परतों का नाश होने लगता है, तब हमारा जीवन में सुख और पूर्णता आने लगते हैं। 

शिवयोग कहता है कि मनुष्य का जीवन दुःख भोगने के लिए बिल्कुल नहीं हुआ है। यह जो हमारे मन में धारणा बनी है कि जीवन है तो सुख-दुःख तो बना ही रहेगा - ये केवल हमारे मन की भ्रांति है और कुछ भी नहीं। क्योंकि जब कोई व्यक्ति दुःखी होता है तो वह अपने अंदर नकारात्मक ऊर्जा को पैदा करता है। जिसके कारण उसे कष्ट ही प्राप्त होंगे, इसलिए मन में सदैव सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करना चाहिए ताकि हमें जीवन में सुख-शांति प्राप्त हो।

#shivyogwisdom #lifemanagement #sprituality #awareness #consciousness

Comments

Popular posts from this blog

कष्टों और मुसीबतों से कैसे मुक्ति पाएं?

ECHOES OF ETERNITY: TAPPING INTO TIMELESS WISDOM AND ETERNAL TRUTHS

कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है?