अध्यात्म का अहंकार से क्या संबंध है?

 


अध्यात्म का अहंकार से क्या संबंध है?
जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते हैं, उस ही प्रकार से आध्यात्मिक मनुष्य के भी दो पहलुओं का जिक्र शिवयोग में किया गया है। पहला उजाला और दूसरा अंधेरा। उजाला पक्ष मनुष्य के गुणों को बतलाता है तो अंधेरा पक्ष उसके दोषों को प्रकट करता है। अध्यात्म का उजाला पक्ष सकारात्मक चिंतन को बताया गया है। इसका प्रारम्भ स्वयं के शरीर से होता है। शरीर को अष्टांग योग के नियमों में बांधना पड़ता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को प्रशिक्षित करना पड़ता है, तब आत्मा के साम्राज्य में प्रवेश होता है। आत्म-साक्षात्कार करके मनुष्य पूर्णता को प्राप्त होता है।
अध्यात्म के अंधेरे पक्ष में व्यक्ति एकांत पसंद हो जाता है। उसे एक अजीब सा नशा हो जाता है। कई बार शक्तियां पाकर उस मनुष्य को अहंकार होने लगता है। शक्तियों के मद में कई बार दिखावा करने लगता है। उसे यदि उचित गुरु का संरक्षण मिले तो वह भवसागर से पार हो जाता है। गुरु समर्थ न हो तो डूब जाता है। इसलिए अंधेरे से बचते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए।

Comments

Popular posts from this blog

कष्टों और मुसीबतों से कैसे मुक्ति पाएं?

ECHOES OF ETERNITY: TAPPING INTO TIMELESS WISDOM AND ETERNAL TRUTHS

कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है?