भाषा नहीं भाव समझते हैं भगवान
भाषा नहीं भाव समझते हैं भगवान
मनुष्य की हर उम्मीद ईश्वर पर टिकी हुई होती है। कुछ अच्छा करने की जब हम सोचते हैं तब हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि कार्य सफल हो जाए। यहां तक कि जब हम किसी मुसीबत में पड़ जाते हैं, तब भी हम उसी ईश्वर से विनती करते हैं कि वह हमें इस मुसीबत से निजात दिलाएं। कभी तो हमारी कोई प्रार्थना ईश्वर तुरंत स्वीकार कर लेते हैं और कभी-कभी हम जैसा चाहते हैं वैसे नहीं होता है। ऐसी स्थिति में सवाल यह उठता है कि हम अपनी बात ईश्वर से कैसे कहें कि वह पूरी हो जाए।
शिवयोग में बताया गया है कि भगवान भाषा को नहीं समझते। वह तो साधक के भाव को समझते हैं। हमारे मन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के भाव होते हैं। हम जैसा भाव दूसरों के लिए रखेंगे, वैसा ही प्रतिफल हमें जीवन में प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को अपने मन में सदैव सबके प्रति सकारात्मक भाव रखना चाहिए। ताकि तुम जो प्राप्त करना चाहते हो वह सरलतम रूप में तुमको प्राप्त हो सके।
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