शांति के लिए किस शक्ति की जरूरत है?
शांति के लिए किस शक्ति की जरूरत है?
सिद्धों ने दुनिया को योग का सूत्र दिया है, ध्यान का सूत्र दिया है। ध्यान करने का मतलब है अपनी शक्ति से परिचित होना, अपनी क्षमता से परिचित होना, अपनी सृजनात्मक क्षमता का निर्माण करना और अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठापित करना। जो मनुष्य अपने भीतर की गहराई से नहीं देखता, वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं हो पाता है। जिसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता, जो अपनी शक्ति को नहीं जानता, उसकी सहायता कोई भी नहीं कर सकता। अगर काम करने की उपयोगिता है और क्षमता भी है, तो वह शक्ति सृजनात्मक हो जाती है।
आज दुनिया में सुविधावाद और भौतिकवाद बढ़ रहा है। जितना जीवन में निष्काम भाव होगा उतनी ही सृजनात्मक शक्ति भी होगी, दोनों का बराबर योग होता है। अब सवाल यह उठता है कि सृजनात्मक शक्ति का विकास कैसे करें? सृजनात्मक शक्ति का विकास करने के लिए अनेक उपाय हैं। शक्ति के जागरण के अनेक साधन हो सकते हैं, पर उन सब में सबसे शक्तिशाली साधन है ध्यान। हमारी बिखरी हुई चेतना, विक्षिप्त चेतना काम नहीं देती। ध्यान हमारे विक्षिप्त चित्त को एकाग्र बना देता है। शिवयोग में भी कहा गया है कि ‘खुशी तक पहुंचा नहीं जा सकता और न ही उस पर कब्जा किया जा सकता। साथ ही खुशी को अर्जित नहीं किया सकता और न ही ग्रहण किया जा सकता है। वह तो हर मिनट प्यार, गरिमा और आभार के साथ जीने का आध्यात्मिक अनुभव है। ‘आदमी शांति की खोज में है लेकिन स्थूल से सूक्ष्म में गए बिना शांति नहीं मिल सकती। हम अपने प्रति मंगल भावना करें कि मेरी सृजनात्मक-आध्यात्मिक शक्ति जागे और मेरी ध्वंसात्मक शक्ति समाप्त हो, यह मूर्च्छा का चक्र टूटे। यदि इस तरह की भावना-निर्माण में हम सफल हो सकें तो चेतना का विकास परमआवश्यक हो जाता है।
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