प्रकृति से एकाकार के लिए करें ये पूजा
प्रकृति से एकाकार के लिए करें ये पूजा
गोवर्धन पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस त्यौहार को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानी प्रतिपदा को मनाया जाता है। आमतौर पर यह दिवाली के पर्व के अगले दिन ही मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने के पीछे का कारण भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान इंद्र ने ब्रज गांव में बहुत तेज बारिश शुरू कर दी थी। इस कारण से वहां पर बाढ़ आ गई और त्राहि-त्राहि मच गई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। कई दिनों के लगातार तूफान के बाद लोगों को अप्रभावित देखकर भगवान इंद्र ने अपनी हार मान ली और बारिश को रोक दिया। इसलिए इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है और इस पूजा का अलग महत्व है। भगवान श्री कृष्ण ने भगवान इंद्र के घमंड को चूर कर दिया था। इसके बाद सभी ब्रजवासियों ने उस दिन से श्री कृष्ण की पूजा करना शुरू कर दी थी। उसी दिन से ही गोवर्धन पूजा की शुरूआत बताई जाती है।
गोवर्धन पूजा का महत्व-
इस पूजा को करने वाले व्यक्ति का सीधा प्रकृति से सामंजस्य बनता है। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस पूजा में गोबर से बने हुए पर्वत की विधिपूर्वक पूजा करने और भगवान कृष्ण को भोग लगाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इसी दिन गाय की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से पूजा करने वाले व्यक्ति को इच्छानुसार फल भी मिलता है। गोवर्धन पूजा करने से धन और समृद्धि प्राप्ति होती है और परिवार में खुशहाली आती है। इस दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण को 56 भोग भी अर्पित करते हैं। इस प्रसाद को अन्नकूट कहते हैं, जिसके कारण इस पर्व को अन्यकूट पर्व भी कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुसार इस दिन यह भोग भगवान को चढ़ाने से व्यक्ति के जीवन में कभी अन्न की कमी नहीं होती। इन सभी कारणों की वजह से इस पर्व का एक विशेष महत्व माना जाता है।
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