कर्म करने से क्यों नहीं मिलती कामयाबी?
कर्म करने से क्यों नहीं मिलती कामयाबी?
जीवन में अक्सर हम देखते हैं कि व्यक्ति कठिन परिश्रम तो करता है लेकिन सफलता के नाम पर उसको कुछ भी हासिल नहीं होता। इसके बाद वह चिंतन करता है कि मेहनत में कमी कहां रह गई। दरअसल वह व्यक्ति यह नहीं समझ पाता है कि कर्म करने के साथ-साथ व्यक्ति को और भी कुछ करना पड़ता है। क्योंकि जब तक मनुष्य अपने द्वारा किए गए कर्म को मन से और मन को आत्मा से और आत्मा को परमात्मा से नहीं जोड़ता, तब तक उसे ऐसे ही लाख परिश्रम करने के बावजूद सफलता नहीं प्राप्त होती है। जिस दिन व्यक्ति इस प्रक्रिया को अपना लेगा, उस दिन वह जो प्राप्त करने की सोचेगा वह कर्म करने से पहले ही उसे प्राप्त हो जाएगा। इस लिए जो व्यक्ति कहते हैं कि वह कर्मयोगी हैं उन्हें यह समझना होगा कि कर्मयोगी का मतलब केवल हाथ-पैर चलाना या शारीरिक श्रम करना नहीं होता है। कर्मयोगी का मतलब होता है कि वह अपनी सोच को भी सही दिशा में डाले, मन को कर्म से जोड़ना भी कर्म है और मन को परमात्मा से जोड़ लेना भी एक कर्म है। इस लिए शिवयोग में साधना को कर्म बताया गया है। क्योंकि जब मनुष्य साधना करता है तब वह उस परमात्मा से जुड़ जाता है और उसके मन में जो भी प्राप्त करने की इच्छा जागृत होती है वह उसे स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।
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