कौन सा कर्म संचित कर्म बन जाता है?

 

कौन सा कर्म संचित कर्म बन जाता है?

सभी धर्म-शास्त्रों में एक बात कही गई है कि कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। क्योंकि जब व्यक्ति के अंदर अहंकार आ जाता है तो वह कोई न कोई ऐसी बात कर बोल जाता है, जिसकी बात से अगले व्यक्ति का मन बहुत दुःखी हो जाता है। यह कर्म हमारा संचित कर्म बन जाता है, जिसका फल हमें इस जन्म के साथ ही साथ अगले जन्म में भी भोगना पड़ता है। इसलिए मन पर नियंत्रण करना चाहिए जो आप कर सकते हैं। क्योंकि संचित कर्मों को अच्छे कर्म करके, साधना करके और निष्काम कर्म करते हुए गुरु के सानिध्य में रहकर जला सकते हो। गुरु के द्वारा ही आपको यह ज्ञान प्राप्त हो सकता है कि सबके दिल के मंदिर में शिव रहता है। जब आप उस शिव को स्मरण कर दूसरे के आगे झुकते हो तो आपके मन में व्याप्त अहंकार, नकारात्मक विचार स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं और आप अपने जीवन में उस लक्ष्य की प्राप्ति कर लेते हो। जिसके लिए न जाने कितने जन्मों से इस सृष्टि में बार-बार जन्म ले रहे हो।

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