गुरु कृपा के लिए समर्पण क्यों जरूरी है?
गुरु का स्थान बहुत उच्च का होता है। इसलिए जब कोई शिष्य बनकर गुरु की शरण में समर्पित भाव से जाता है, तो गुरु की जिम्मेदारी बनती है कि वह उसके जीवन में अज्ञानता का अंधकार मिटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश उसके जीवन में भर दे। क्योंकि शास्त्रों में यही गुरु का पहला और अंतिम कर्तव्य बताया गया है। क्योंकि जब शिष्य के जीवन का अंधकार मिट जाएगा और प्रकाश से जगमगा उठेगा, तब वह व्यक्ति अपने उस कर्तव्य को पूर्ण कर लेगा जिसके लिए उसने इस सृष्टि में जन्म लिया है। क्योंकि व्यक्ति के अंदर जब तक आध्यात्मिक ज्ञान की अनुभूति नहीं होगी, तब तक वह इस जीवन का आनंद नहीं ले पाएगा और न ही वह मोक्ष की प्राप्ति कर सकेगा। क्योंकि गुरु ही वह कड़ी होता है जो अपने शिष्य को मोक्ष का मार्ग दिखा सकता है। इसलिए हमारे धर्म-ग्रंथों में गुरु को भगवान से ऊपर बताया गया है।
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