भाषा से ज्यादा भाव शुद्धि क्यों जरूरी?

 

भाषा से ज्यादा भाव शुद्धि क्यों जरूरी?

मनुष्य को सदैव जीवन में हर कर्म यानि बोलना, किसी से मिलना या फिर कोई भी कार्य करना हो, तो उसके पीछे जो भावना हो वह शुद्ध हो। क्योंकि एक आध्यात्मिक और भौतिक जीवन को सुखद और आनंद से वही व्यक्ति जीता है जिसके मन में सकारात्मक विचार होते हैं। इसी के साथ मन का निर्मल होना भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि ईश्वर भाषा को नहीं भावना को समझते हैं। यही कारण है जिस व्यक्ति की भावना दूषित होती है या दूसरों के प्रति घृणा का भाव रखता है, उसके जीवन में कभी सुख-शांति नहीं होती। वह भले ही अपने जीवन में भौतिक संसाधनों से संपन्न क्यों न हो लेकिन उसके मन को शांति और आनंद की अनुभूति नहीं होती है। वह सदैव परेशान ही देखने को मिलेगा, क्योंकि वह अपने सुख से नहीं दूसरों के सुख से दुःखी होता है। जबकि जिस व्यक्ति की भावना शुद्ध और निर्मल होती है वह बहुत थोड़े में ही प्रसन्न और आनंदित हो जाता है। क्योंकि उसका मन मैला नहीं होता है, वह दूसरों के सुख में भी अपनी खुशी ढूंढ लेता है।

#shivyogwisdom #intensionmatter #awareness #consciousness #spirituality

Comments

Popular posts from this blog

कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है?

कष्टों और मुसीबतों से कैसे मुक्ति पाएं?

ECHOES OF ETERNITY: TAPPING INTO TIMELESS WISDOM AND ETERNAL TRUTHS