शिवयोगी और शवयोगी में क्या फर्क है?


शिवयोगी और शवयोगी में क्या फर्क है?

सिद्धों ने बताया है कि इस संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं जिनको अध्यात्म में शिवयोगी और शवयोगी के नाम से बताया गया है। सिद्धों ने बताया है कि जिस प्रकार फल केवल तब तक ही स्वस्थ्य रहता है जब तक वह वृक्ष से जुड़ा रहता है और जब वही फल वृक्ष से अलग हो जाता है, तब वह धीरे-धीरे सड़ने लगता है। मनुष्य भी ठीक इसी प्रकार का होता है। जब तक मनुष्य दिव्यता से जुड़ा रहता है तब तक वह स्वस्थ्य रहता है। जीवन में जब भी उसे कष्ट या दुःख का सामना करना पड़ता है तब तब वह अपनी प्राण ऊर्जा के माध्यम से उस समस्या से अपने आपको निकाल लेता है। दिव्यता से युक्त ऐसा मनुष्य जीवन में सदा ही लक्ष्य की प्राप्ति करता है और वो ही शिवयोगी होता है। वहीं कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके जीवन में जब पीड़ा आती है तो वह उसका हल खोजने की जगह उसी में दुखी हो जाते हैं और ईश्वर को कोसने लगते हैं कि हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? दिव्यता हीन ऐसे लोग कमज़ोर मनोबल के होते हैं, निराशावादी होते हैं और दुःख से निबटने की जगह दुःख में ही बह जाते हैं। ऐसे लोगों को शवयोगी कहते हैं क्योंकि वे अपने आपको उस परमपिता परमेश्वर से अलग कर लेते हैं जो समस्त ऊर्जा और आनन्द के स्रोत हैं और हमें हर मुश्किल परिस्थिति से निकलने का संबल प्रदान करते हैं।

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