दूसरों का भला सोचने से क्या होता है?
दूसरों का भला सोचने से क्या होता है?
जो व्यक्ति दूसरों का हक छीन कर कुछ प्राप्त करने की भावना मन में रखता है, वह जीवन में कभी भी सुखी नहीं रहता है। यह मानवता नहीं पशु भाव है। कर्म का यही सिद्धांत है कि जो तुम दूसरों को दोगे, उसका कई गुना तुम्हारे पास लौटकर भी आएगा, इसलिए अपने भले के लिए किसी दूसरे का बुरा करने की चेष्टा नहीं करना। सिद्धों ने मानव का मार्गदर्शन करते हुए कहा है कि मनुष्य में सदैव देव-भाव होना चाहिए, ताकि जब वह कोई कार्य करे तो उसमें अपने साथ-साथ दूसरों का भी भला हो सके, ऐसे विचार उसके मन में सदैव बने रहना चाहिए। यही भाव उसे पशु -भाव सेे ऊपर उठाकर देव -भाव में स्थापित करते हैं। सबका भला सोचने वाला व्यक्ति पुण्य कर्मों की वह पूंजी इकठ्ठा करता है जो जीवन पर्यन्त उसके सुखों का कारण बनती हैं। ऐसे ही व्यक्ति अपनी चेतना की उन्नति कर सदैव अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं।
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