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Showing posts from December, 2022

क्या इसी जन्म में आत्म-साक्षात्कार संभव है?

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  क्या इसी जन्म में आत्म-साक्षात्कार संभव है? क्या कभी हम यह सोचते हैं कि हमको जो यह जीवन मिला है, हम इसी जन्म में आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त कर लें? समाज में नकारात्मकता फैलाने वाले लोगों को अक्सर यह कहते सुना होगा कि आत्म-साक्षात्कार की स्थिति को प्राप्त करने के लिए कई जन्म लगते हैं। इस बात का कोई तर्क नहीं है। क्योंकि हमारे सामने बुद्ध और विवेकानंद जैसे तमाम उदाहरण हैं जिन्होंने इसी जन्म में आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त कर सिद्धत्व की प्राप्ति की है। अब सवाल यह उठता है कि जब ये लोग इस जन्म में आत्म-साक्षात्कार को प्राप्त कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं।  क्या कभी हमने यह उद्देश्य बनाया कि मुझे आत्म-साक्षात्कार प्राप्त हो जाए? मेरे अंदर जो अनंत की सोई हुए शक्तियां हैं वह जागृत हो जाएं? यदि अभी तक नहीं सोचा तो अब उद्देश्य बनाओ कि हमें इसी जीवन में आत्म-साक्षात्कार की स्थिति को प्राप्त करना है। क्योंकि आत्म-साक्षात्कार होते ही तुम चमत्कारी हो जाओगे। मूल प्रकृति तुम्हारी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकती। जैसे ही कोई दुःखी तुम्हारे सानिध्य में आएगा उसके सारे कष्ट-दुःख नष्ट हो जाएंगे।...

𝐍𝐨𝐮𝐫𝐢𝐬𝐡 𝐚𝐧𝐝 𝐫𝐞𝐣𝐮𝐯𝐞𝐧𝐚𝐭𝐞 𝐲𝐨𝐮𝐫 𝐛𝐨𝐝𝐲 𝐭𝐨 𝐥𝐞𝐚𝐝 𝐚𝐧 𝐚𝐜𝐭𝐢𝐯𝐞 𝐚𝐧𝐝 𝐟𝐢𝐭 𝐋𝐢𝐟𝐞

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  𝐍𝐨𝐮𝐫𝐢𝐬𝐡 𝐚𝐧𝐝 𝐫𝐞𝐣𝐮𝐯𝐞𝐧𝐚𝐭𝐞 𝐲𝐨𝐮𝐫 𝐛𝐨𝐝𝐲 𝐭𝐨 𝐥𝐞𝐚𝐝 𝐚𝐧 𝐚𝐜𝐭𝐢𝐯𝐞 𝐚𝐧𝐝 𝐟𝐢𝐭 𝐋𝐢𝐟𝐞 To nourish means to provide the energy that is necessary to sustain life, growth, good health and well-being. Food is a form of energy. Nourishment the body is an integral part of maintaining overall health and well-being. A top to bottom approach to nourishing your body requires some changes in your routine and lifestyle. The benefits are a healthy, fit, active and agile body, an alert and sharp mind, ability to live life fully, work more productively and enhance happiness. 𝐃𝐞𝐯𝐞𝐥𝐨𝐩 𝐇𝐞𝐚𝐥𝐭𝐡𝐲 𝐃𝐢𝐞𝐭𝐚𝐫𝐲 𝐇𝐚𝐛𝐢𝐭𝐬: The body requires energy in the form of food to perform all physical functions and nutrify the body. Make your diet healthy with generous helpings of fruits, vegetables and water. If you struggle with fruits and vegetables, then get creative and add them to your diet in the form of juices, salads, soups, yogurts and smoothies. If time is...

दिव्यता की अनुभूति के लिए क्या करें?

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दिव्यता की अनुभूति के लिए क्या करें? प्रत्येक मनुष्य और प्रकृति के सभी जीवों में परमात्मा का वास होता है। इसीलिए सिद्धों ने सभी प्राणियों को एक सामान बताया है, न कोई छोटा है न कोई बड़ा। हम सांसारिकता-भौतिकता के भंवर जाल में इस तरह फंस चुके हैं कि आज हम भूल ही गए हैं कि हमारे अंतर में भी एक दिव्य ज्योति प्रज्ज्वलित है, जो साक्षात् परमात्मा का ही अंश है। जब हम शिवयोग की साधना को अपने नित्य जीवन में अपना लेते हैं तो हमें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान स्वतः ही होने लग जाता है। जैसे-जैसे हम प्रतिदिन नियमित रूप से शिवयोग की साधना करते हैं वैसे-वैसे हमारी आध्यात्मिक शक्तियां विकसित होती हैं और हमें उनका अनुभव होना भी प्रारंभ हो जाता है। अपने दैनिक जीवन में हमें उस सर्वशक्तिमान परमेश्वर की अनुभूति होने लगती है और हम अपने अंदर एक दिव्य ऊर्जा के प्रवाह को भी अनुभव करना शुरू कर देते हैं। शिवयोग साधना के मार्ग से हम पुनः एक बार अपनी दिव्यता को प्राप्त कर पाते हैं। #shivyogwisdom #divinity #oneness #equality #consciousness

क्यों जरूरी है स्वयं की शुद्धि?

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क्यों जरूरी है स्वयं की शुद्धि? मनुष्य जीवन कोई न कोई नया काम सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से ही करता है। लेकिन कभी-कभी उसे सफलता की जगह निराशा ही हाथ आती है। जिसे वह मायूस होकर ईश्वर को ही कोसना शुरू कर देता है। जबकि वह वास्तविकता से जान बूझकर अनजान बन जाता है। शिवयोग कहता है कि जब तक मनुष्य अपने शरीर और मन की शुद्धि नहीं करता, तब तक उसकी प्रार्थना ईश्वर तक नहीं पहुंचती। क्योंकि उसके मन व्याप्त विकार और उसके संचित कर्म उसके भाग्य को दुर्भाग्य में बदलते रहते हैं। इसलिए किसी भी काम को शुरू करने से पहले शुद्धि बेहद जरूरी होती है। जब हम साधना के माध्यम से अपने शरीर और मन की शुद्धि कर लेते है, तब हमारी हर प्रार्थना ईश्वर स्वीकार कर, हमारे लिए सफलता के मार्ग खोल देता है। #shivyogwisdom #innerpurification #consciousness #awareness #spirituality

भाषा से ज्यादा भाव शुद्धि क्यों जरूरी?

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  भाषा से ज्यादा भाव शुद्धि क्यों जरूरी? मनुष्य को सदैव जीवन में हर कर्म यानि बोलना, किसी से मिलना या फिर कोई भी कार्य करना हो, तो उसके पीछे जो भावना हो वह शुद्ध हो। क्योंकि एक आध्यात्मिक और भौतिक जीवन को सुखद और आनंद से वही व्यक्ति जीता है जिसके मन में सकारात्मक विचार होते हैं। इसी के साथ मन का निर्मल होना भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि ईश्वर भाषा को नहीं भावना को समझते हैं। यही कारण है जिस व्यक्ति की भावना दूषित होती है या दूसरों के प्रति घृणा का भाव रखता है, उसके जीवन में कभी सुख-शांति नहीं होती। वह भले ही अपने जीवन में भौतिक संसाधनों से संपन्न क्यों न हो लेकिन उसके मन को शांति और आनंद की अनुभूति नहीं होती है। वह सदैव परेशान ही देखने को मिलेगा, क्योंकि वह अपने सुख से नहीं दूसरों के सुख से दुःखी होता है। जबकि जिस व्यक्ति की भावना शुद्ध और निर्मल होती है वह बहुत थोड़े में ही प्रसन्न और आनंदित हो जाता है। क्योंकि उसका मन मैला नहीं होता है, वह दूसरों के सुख में भी अपनी खुशी ढूंढ लेता है। #shivyogwisdom #intensionmatter #awareness #consciousness #spirituality

कौन सा कर्म संचित कर्म बन जाता है?

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  कौन सा कर्म संचित कर्म बन जाता है? सभी धर्म-शास्त्रों में एक बात कही गई है कि कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए। क्योंकि जब व्यक्ति के अंदर अहंकार आ जाता है तो वह कोई न कोई ऐसी बात कर बोल जाता है, जिसकी बात से अगले व्यक्ति का मन बहुत दुःखी हो जाता है। यह कर्म हमारा संचित कर्म बन जाता है, जिसका फल हमें इस जन्म के साथ ही साथ अगले जन्म में भी भोगना पड़ता है। इसलिए मन पर नियंत्रण करना चाहिए जो आप कर सकते हैं। क्योंकि संचित कर्मों को अच्छे कर्म करके, साधना करके और निष्काम कर्म करते हुए गुरु के सानिध्य में रहकर जला सकते हो। गुरु के द्वारा ही आपको यह ज्ञान प्राप्त हो सकता है कि सबके दिल के मंदिर में शिव रहता है। जब आप उस शिव को स्मरण कर दूसरे के आगे झुकते हो तो आपके मन में व्याप्त अहंकार, नकारात्मक विचार स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं और आप अपने जीवन में उस लक्ष्य की प्राप्ति कर लेते हो। जिसके लिए न जाने कितने जन्मों से इस सृष्टि में बार-बार जन्म ले रहे हो। #shivyogwisdom #karmicconnection #awareness #goalmindset #mindfulness

गुरु कृपा के लिए समर्पण क्यों जरूरी है?

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  गुरु कृपा के लिए समर्पण क्यों जरूरी है? गुरु का स्थान बहुत उच्च का होता है। इसलिए जब कोई शिष्य बनकर गुरु की शरण में समर्पित भाव से जाता है, तो गुरु की जिम्मेदारी बनती है कि वह उसके जीवन में अज्ञानता का अंधकार मिटाकर ज्ञान रूपी प्रकाश उसके जीवन में भर दे। क्योंकि शास्त्रों में यही गुरु का पहला और अंतिम कर्तव्य बताया गया है। क्योंकि जब शिष्य के जीवन का अंधकार मिट जाएगा और प्रकाश से जगमगा उठेगा, तब वह व्यक्ति अपने उस कर्तव्य को पूर्ण कर लेगा जिसके लिए उसने इस सृष्टि में जन्म लिया है। क्योंकि व्यक्ति के अंदर जब तक आध्यात्मिक ज्ञान की अनुभूति नहीं होगी, तब तक वह इस जीवन का आनंद नहीं ले पाएगा और न ही वह मोक्ष की प्राप्ति कर सकेगा। क्योंकि गुरु ही वह कड़ी होता है जो अपने शिष्य को मोक्ष का मार्ग दिखा सकता है। इसलिए हमारे धर्म-ग्रंथों में गुरु को भगवान से ऊपर बताया गया है। #shivyogwisdom #awareness #gurugrace #gratitude #mindfulness

सकारात्मक सोचना क्यों जरूरी है?

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सकारात्मक सोचना क्यों जरूरी है? सकारात्मक सोच किसी भी व्यक्ति को उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। इसलिए एक साधक को अपने आध्यात्मिक मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिए घृणा और क्रोध से मुक्त होना आवश्यक होता है। क्योंकि घृणा और क्रोध के चलते साधक के मन में नकारात्मक विचार उत्पन्न होते हैं। जिससे वह अपने मार्ग से भटक जाता है और जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह इस संसार में जन्म लेता है। उसकी पूर्ति नहीं कर पाता है, इस लिए उसका सूक्ष्म शरीर इस जन्म-मरण के चक्र में ही फंस कर रह जाता है। शिवयोग के सिद्धों ने आध्यात्मिक मार्ग में उन्नति प्राप्त करने के लिए प्रयासरत साधकों को सबसे पहले सकारात्मक सोच का प्रवाह मन में करने के लिए जोर दिया है। क्योंकि सकारात्मक विचारों से व्यक्ति के अंदर मनोबल और आत्मशक्ति की वृद्धि होती है। जिससे वह अपने लक्ष्य से न भटक कर, अपने मूल उद्देश्य को प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। #shivyogwisdom #positivemindset #consciousness #awareness #divinity

जीवन में कष्ट का असली कारण क्या है?

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  जीवन में कष्ट का असली कारण क्या है? जब हम अपने आप को भूल जाते हैं कि हम वास्तव में हैं कौन? जब माया में फंसकर हमको याद ही नहीं रहता है कि हम वास्तव में कौन हैं? तभी हमें जीवन में कष्ट और पीड़ा का अहसास होता है। जिन लोगों को पीड़ा हो रही हो या कष्ट भोगना पड़ रहा हो, वो लोग एक बार माया के जाल से निकलकर अहसास करें कि तुम शरीर नहीं आत्मा हो। वह आत्मा जो परमात्मा का अंश है और तुम्हारी उत्पति उस शिव से हुई है, अंत में उसी शिव में विलय हो जाना है। यह अहसास करते ही तुम्हारी सारी पीड़ा और भय दोनों ही गायब हो जाएंगे। बस इस अनुभव को एक बार मन में लाकर देखना होगा। यदि ऐसा कर लिया तो तुमको इसके बाद किसी से भी क्रोध नहीं होगा। क्योंकि तुम्हें मुझ और मुझमें कोई अंतर ही नहीं दिखेगा। इस के बाद तुमको अहसास होगा कि तुम और मैं एक ही हैं, जो शिव के ही अंश हैं। इसी सोच को मानव के अंदर जागृत करना ही शिवयोग फोरम का एकमात्र परम उद्देश्य है। #shivyogwisdom #awareness #positivemindset #knowyourself #meditation

शिवयोगी और शवयोगी में क्या फर्क है?

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शिवयोगी और शवयोगी में क्या फर्क है? सिद्धों ने बताया है कि इस संसार में दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं जिनको अध्यात्म में शिवयोगी और शवयोगी के नाम से बताया गया है। सिद्धों ने बताया है कि जिस प्रकार फल केवल तब तक ही स्वस्थ्य रहता है जब तक वह वृक्ष से जुड़ा रहता है और जब वही फल वृक्ष से अलग हो जाता है, तब वह धीरे-धीरे सड़ने लगता है। मनुष्य भी ठीक इसी प्रकार का होता है। जब तक मनुष्य दिव्यता से जुड़ा रहता है तब तक वह स्वस्थ्य रहता है। जीवन में जब भी उसे कष्ट या दुःख का सामना करना पड़ता है तब तब वह अपनी प्राण ऊर्जा के माध्यम से उस समस्या से अपने आपको निकाल लेता है। दिव्यता से युक्त ऐसा मनुष्य जीवन में सदा ही लक्ष्य की प्राप्ति करता है और वो ही शिवयोगी होता है। वहीं कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके जीवन में जब पीड़ा आती है तो वह उसका हल खोजने की जगह उसी में दुखी हो जाते हैं और ईश्वर को कोसने लगते हैं कि हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? दिव्यता हीन ऐसे लोग कमज़ोर मनोबल के होते हैं, निराशावादी होते हैं और दुःख से निबटने की जगह दुःख में ही बह जाते हैं। ऐसे लोगों को शवयोगी कहते हैं क्योंकि वे अपने आपको उस परम...

निगेटिव बिलीव सिस्टम क्या है?

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  निगेटिव बिलीव सिस्टम क्या है? निगेटिव बिलीफ सिस्टम हमारे दिमाग में एक विकार की तरह होता है जिसके चलते किसी भी साधारण और महत्वहीन घटना को भी हम शगुन और अपशगुन कि दृष्टि से देखने लगते हैं। उदहारण स्वरूप जैसे हम किसी जरूरी काम के लिए निकलते हैं और काली बिल्ली सामने से रास्ता काट देती है तो हम रूक जाते हैं क्योंकि हमारे मन में यह विकार बैठ चुका है कि मैं जिस काम के लिए जा रहा हूं, वह अब पूरा नहीं होगा। इसी प्रकार हम पितृ पक्ष में कोई नए काम को शुरू न करके उसे आगे के लिए टाल देते हैं क्योंकि हमारी धारणा बन चुकी है कि यह समय शुभ कार्यों के लिए उचित नहीं होता है। ऐसे ही न जाने कितने कारण हमारे सामने आ जाते हैं और हम अपने लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए किए जाने वाले कार्यों को रोक देते हैं। वास्तविकता में ऐसा कुछ नहीं है। शिवयोग में कहा गया है कि कोई एक ऐसा क्षण और कण बताओ जहां पर ईश्वर विद्यमान न हो। यह विकार हर धर्म अथवा पंथी में अलग-अलग होते हैं और कोई उसको शुभ तो कोई अशुभ मानता है। शिवयोग कहता है कि जब जो काम करना हो, ईश्वर का आवाह्न कर तत्काल शुरू कर दें। जिस भी कार्य को भगवान को समर्प...

आप भी बन सकते हैं त्रिकालदर्शी

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  आप भी बन सकते हैं त्रिकालदर्शी प्रत्येक व्यक्ति के मन में अपने भूत और भविष्य को जानने की रूचि होती है। लेकिन सिद्धों ने बताया है कि यदि हमें अपने पूर्व जन्म के दोषों का पता चल जाए तो हम उसका निवारण कर अपना भविष्य भी बदल सकते हैं। यह बात वैसे असंभव जैसी जरूर है पर असंभव है नहीं। हमारे ग्रंथों में इस बात का उल्लेख भी है कि जो व्यक्ति महामृत्युंजय साधना कर लेता है, वह किसी भी व्यक्ति का भूत और भविष्य देखने का क्षमता रखता है यानि त्रिकालदर्शी बन जाता है। इसी साधना के माध्यम से ही हमारे सिद्ध सृष्टि के लोगों के लिए कल्याण का मार्ग तलाश करते आए हैं। हम अक्सर देखते हैं कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में बहुत ही परोपकारी होता है पर उसके जीवन में उतना ही कष्ट भी भोग रहा होता है। क्योंकि वह उसके संचित कर्म होते हैं, जिसके कारण वह वर्तमान जीवन में कष्टों को भोग रहा होता है। इन कष्टों का उपाय तब तक संभव नहीं है जब तक हम अपने पूर्व जन्मों के संचित कर्मों का नाश नहीं कर लेते हैं। जिसके लिए हमें अपने पूर्व जन्म के जीवन में जाकर उस दोष का पता लगाकर उसका सुधार भी करना होगा। जिसकी वजह से हमें इस जीवन मे...

सफलता के लिए प्रेरणा क्यों जरूरी है?

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 सफलता के लिए प्रेरणा क्यों जरूरी है? प्रेरणा का मतलब व्यक्ति के मन में किसी कार्य को करने के लिए तीव्र इच्छा और आशा जागृत होने से है। यह हमारी मानसिक शक्ति के अज्ञात स्रोतों को जगा देती है और साथ ही साथ हृदय को स्पंदित भी करती है। प्रेरणा मन को उल्लास से भर देती है और मनुष्य को किसी भी लक्ष्य को पूरा करने के लिए मानसिक स्तर पर तैयार करती है। मनुष्य का जीवन प्रेरणा से चलता है और वह दूसरों से प्रेरणा लेकर उनसे से भी बड़ी सफलता प्राप्त कर पाता है। प्रेरणा एक प्रक्रिया है, जिसमें प्रेरित व्यक्ति की आंतरिक शक्तियां उसे लक्ष्य की ओर निर्देशित करती हैं। प्रेरणा ही वह माध्यम है जो किसी भी व्यक्ति को बड़े से बड़ा काम करने का साहस देती है क्योंकि मनुष्य प्रेरणा से ही चलता है और सिद्धों ने इसे बहुत ही शक्तिशाली बताया है। #shivyogwisdom #awareness #inspiration #lifegoals #successmindset

किस साधना से इच्छाओं की पूर्ति संभव है?

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  किस साधना से इच्छाओं की पूर्ति संभव है? हर व्यक्ति के मन में सदा ईश्वर से कुछ न कुछ प्राप्त करने की इच्छा बनी रहती है, लेकिन ज्यादातर लोगों की इच्छा पूरी न होकर अधूरी ही रह जाती है। इससे कभी कभी हमारा विश्वास ईश्वर से उठ जाता है और हम उस परम सत्ता को दोषी भी ठहरा देते हैं। असल में दोष ईश्वर में नहीं अपितु हमारे मांगने के तरीके में होता है। हमारी हर मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं यदि हमारी इच्छा सात्विक हो और ईश्वर से मांगने का हमारा तरीका सही हो। सात्विक इच्छा का अर्थ है, वो इच्छा जो केवल कल्याण के लिए हो- अपना या अन्य मनुष्य, प्रकृति आदि सभी के हित के लिए हो। हमारी वो इच्छाएं जो आत्म कल्याण और परोपकार की भावना से प्रेरित होती हैं उन सभी सद इच्छाओं की पूर्ति शाम्भवी साधना से जरूर होती है। शाम्भवी साधना ऐसी उच्च और गहन साधना है जो साधक को प्रथम संसार में पूर्ण सफलता और संतोष प्रदान करती है और उसके बाद संसार से तृप्त साधक को अध्यात्म की उपलब्धियों से तृप्त करती है। ऐसा शाम्भवी साधक ही समस्त भोगों को भोगते हुए अंततः आत्म साक्षात्कार को भी प्राप्त कर पाता है। #shivyogwisdom #shivyogsad...