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Showing posts from October, 2022

क्या जीवन में वैराग्य जरूरी है?

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  क्या जीवन में वैराग्य जरूरी है? अध्यात्म और वैराग्य दोनों ही एक दूसरे से भिन्न हैं। अध्यात्म का तात्पर्य ईश्वर को पाने के लिए साधना करने से है। जबकि वैराग्य का तात्पर्य सांसारिक मोह-माया के त्याग से है। वैराग्य धारण करने वाले व्यक्ति की धारणा होती है कि यदि वह संसार का त्याग कर देते हैं, तो ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन यह संभव नहीं है। जबकि अध्यात्म के लिए हमें अपने विकारों को त्यागने की जरूरत है, संसार को त्यागने की नहीं। तमाम ऐसे लोग संसार में होते हैं जो स्वयं को बैरागी बताते हैं। ऐसे लोग अक्सर संसार को त्यागने की बातें करते रहते हैं और संसार में दोष निकालते रहते हैं। उनको हर समय यह चिंता सताती रहती है कि कहीं सांसारिक वस्तुएं उन्हें आकर्षित न कर लें। इसलिए वे उनसे भागते रहते हैं। यदि आप किसी वस्तु के नियंत्रण में नहीं हैं, आपने संसार की सुख-सुविधा को त्याग दिया है और आप विकारों का त्याग कर चुके हैं, तो वह वस्तु आप को कैसे अपनी ओर आकर्षित कर सकती है? जो मनुष्य इस संसार से भागकर साधना करने का प्रयास करता है, वह बेहद कमजोर साधक होता है। जो संसार में रहकर ही साधना करते हैं उ...

भाषा नहीं भाव समझते हैं भगवान

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  भाषा नहीं भाव समझते हैं भगवान मनुष्य की हर उम्मीद ईश्वर पर टिकी हुई होती है। कुछ अच्छा करने की जब हम सोचते हैं तब हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि कार्य सफल हो जाए। यहां तक कि जब हम किसी मुसीबत में पड़ जाते हैं, तब भी हम उसी ईश्वर से विनती करते हैं कि वह हमें इस मुसीबत से निजात दिलाएं। कभी तो हमारी कोई प्रार्थना ईश्वर तुरंत स्वीकार कर लेते हैं और कभी-कभी हम जैसा चाहते हैं वैसे नहीं होता है। ऐसी स्थिति में सवाल यह उठता है कि हम अपनी बात ईश्वर से कैसे कहें कि वह पूरी हो जाए। शिवयोग में बताया गया है कि भगवान भाषा को नहीं समझते। वह तो साधक के भाव को समझते हैं। हमारे मन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के भाव होते हैं। हम जैसा भाव दूसरों के लिए रखेंगे, वैसा ही प्रतिफल हमें जीवन में प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को अपने मन में सदैव सबके प्रति सकारात्मक भाव रखना चाहिए। ताकि तुम जो प्राप्त करना चाहते हो वह  सरलतम रूप में तुमको प्राप्त हो सके। #lifemanagement #shivyogwisdom #awareness #spirituality #godlanguage

अध्यात्म का अहंकार से क्या संबंध है?

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  अध्यात्म का अहंकार से क्या संबंध है? जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते हैं, उस ही प्रकार से आध्यात्मिक मनुष्य के भी दो पहलुओं का जिक्र शिवयोग में किया गया है। पहला उजाला और दूसरा अंधेरा। उजाला पक्ष मनुष्य के गुणों को बतलाता है तो अंधेरा पक्ष उसके दोषों को प्रकट करता है। अध्यात्म का उजाला पक्ष सकारात्मक चिंतन को बताया गया है। इसका प्रारम्भ स्वयं के शरीर से होता है। शरीर को अष्टांग योग के नियमों में बांधना पड़ता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को प्रशिक्षित करना पड़ता है, तब आत्मा के साम्राज्य में प्रवेश होता है। आत्म-साक्षात्कार करके मनुष्य पूर्णता को प्राप्त होता है। अध्यात्म के अंधेरे पक्ष में व्यक्ति एकांत पसंद हो जाता है। उसे एक अजीब सा नशा हो जाता है। कई बार शक्तियां पाकर उस मनुष्य को अहंकार होने लगता है। शक्तियों के मद में कई बार दिखावा करने लगता है। उसे यदि उचित गुरु का संरक्षण मिले तो वह भवसागर से पार हो जाता है। गुरु समर्थ न हो तो डूब जाता है। इसलिए अंधेरे से बचते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। #shivyogwisdom #spritiuality #selfrealization #awareness ...

We are an amalgamation of our experiences, choices, beliefs and mindset.

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  We are an amalgamation of our experiences, choices, beliefs and mindset. According to these, we live our lives, achieve, succeed, fail and experience. Our daily routine is also an off-shoot of the kind of person we are and what we want from our lives. Sadly, most of us do not know what we want from our lives and the direction in which to steer our lives. We have immense power to create what we want, write our own destiny, manifest the future we want and achieve everything that we set our hearts on, provided we seek it with pure intention. We must live a balanced life, with all parameters checked – personal, professional, social and spiritual. We must work hard, practice full honesty and integrity, be content with what we have and do the best we can. Let go of beliefs and thoughts that pull you down. Avoid trying to be perfect all the time. Stop living to please people. Be more in control of your life. To live a complete life, some discipline, structures and boundaries are mandato...

बुद्धि और गुण में क्या फर्क है?

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  बुद्धि और गुण में क्या फर्क है? बुद्धि जन्म से मिलती है और यह विकसित नहीं की जा सकती है। गुण देख सुन कर पैदा किये जाते हैं, जैसे खाना बनाना ही लें तो घर में खाना बनता देखकर इंसान सीख जाता है। यदि उस कार्य, वस्तु इत्यादि में रूचि भी है तो वह उसका विशेषज्ञ हो जाता है। सड़क पर चलने से काफी कुछ यातायात नियम इंसान सीख जाता है, लेकिन जो बुद्धि से कमजोर है वह सड़क पर भी दूसरों को चलते देखकर भी ठीक से नहीं चल पाता है। बुद्धिमान व्यक्ति गुणहीन हो सकता है यदि वह गुण को महत्व नहीं देता है या सीखना नहीं चाहता है अथवा पालन नहीं करना चाहता है। इसके विपरीत बुद्धिहीन व्यक्ति गुणवान हो सकता है क्योंकि उसको जो सिखाया जाता है वह उसे ट्रेनिंग की तरह स्वीकार कर लेता है। बहुत से बुद्धि से कमजोर लोग तार वाली कुर्सी बुन लेते हैं या वाद्य यंत्र आदि बहुत अच्छी तरह से बजा लेते हैं, क्योंकि जितना भी उनको सिखाया गया है, उसने सीख लिया है। कई बार बुद्धिमान लोग अपनी बुद्धि के कारण सामान्य गुणों में पीछे रह जाते हैं। #shivyogwisdom #lifemanagement #divinity #intelligenceandvirtue #awareness

प्रकृति से एकाकार के लिए करें ये पूजा

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  प्रकृति से एकाकार के लिए करें ये पूजा गोवर्धन पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस त्यौहार को अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानी प्रतिपदा को मनाया जाता है। आमतौर पर यह दिवाली के पर्व के अगले दिन ही मनाया जाता है। इस त्यौहार को मनाने के पीछे का कारण भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान इंद्र ने ब्रज गांव में बहुत तेज बारिश शुरू कर दी थी। इस कारण से वहां पर बाढ़ आ गई और त्राहि-त्राहि मच गई। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। कई दिनों के लगातार तूफान के बाद लोगों को अप्रभावित देखकर भगवान इंद्र ने अपनी हार मान ली और बारिश को रोक दिया। इसलिए इस दिन को एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है और इस पूजा का अलग महत्व है। भगवान श्री कृष्ण ने भगवान इंद्र के घमंड को चूर कर दिया था। इसके बाद सभी ब्रजवासियों ने उस दिन से श्री कृष्ण की पूजा करना शुरू कर दी थी। उसी दिन से ही गोवर्धन पूजा की शुरूआत बताई जाती है।  गोवर्धन ...

भाई दूज उत्सव का क्या है उद्देश्य?

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भाई दूज उत्सव का क्या है उद्देश्य? सनातन पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। भाई दूज के दिन हर बहन अपने भाई को रोली व अक्षत का तिलक कर उसके उज्जवल भविष्य और दीर्घ आयु के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती है। भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा भी देता है। भाई दूज का पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है और बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं।  पौराणिक कथा -  इस त्योहार के पीछे एक उल्लेख यह भी है कि इस दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना को दर्शन दिया था। जो बहुत समय से उनसे मिलने के लिए व्याकुल थी। तब भाई यम के आगमन पर यमुना ने स्वागत की तैयारी कर रखी थी और तिलक लगाकर आरती की और भोजन कर बेहद आवभगत किया था। तभी यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। इसी कारण इस दिन यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का भी बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमुना ने अपने भ...

धनतेरस क्यों मनाया जाता है?

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  धनतेरस क्यों मनाया जाता है? धनतेरस का त्यौहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरी अमृत कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन को ‘धन्वंतरी त्रयोदशी‘ भी कहते हैं। भगवान धन्वंतरी प्रथम चिकित्सक व आयुर्वेद जगत के पुरोधा माने गए हैं। इसी दिन आयुर्वेदिक वैद्य विशेष तौर पर रोगियों को प्रसाद रूप में नीम की पत्तियों का नैवेद्य देते हैं। क्योंकि नीम की पत्तियों का सेवन बेहद स्वास्थ्यवर्धक होता है। क्योंकि इसमें रोगमुक्त करने की अतुलनीय क्षमता रहती है। धनतेरस पर नए बर्तनों और चांदी के सिक्कों को खरीदने का भी विशेष मान्यता है। ऐसा कहा जाता है कि ‘त्रयोदशी‘ के दिन सिक्के या धातु निर्मित बर्तन खरीदने से तेरह गुना फायदा होता है। धन्वंतरी जी के हाथों में अमृत युक्त धातु का कलश होने के कारण ही इस दिन नए बर्तनों को खरीदने की प्रथा भी है। शिवयोग सिद्धों ने इसका भाव पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि हम अपने जीवन रूपी पात्र को इस प्रकार तैयार करना चाहिए कि वह अमृत से पूर्ण हो सके। इसी तरह चांदी के सिक्के ‘चन्द्रमा‘ के प्रतीक हैं। जो कि मन में शीतलता और जी...

शांति के लिए किस शक्ति की जरूरत है?

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  शांति के लिए किस शक्ति की जरूरत है? सिद्धों ने दुनिया को योग का सूत्र दिया है, ध्यान का सूत्र दिया है। ध्यान करने का मतलब है अपनी शक्ति से परिचित होना, अपनी क्षमता से परिचित होना, अपनी सृजनात्मक क्षमता का निर्माण करना और अहिंसा की शक्ति को प्रतिष्ठापित करना। जो मनुष्य अपने भीतर की गहराई से नहीं देखता, वह अपनी शक्ति से परिचित नहीं हो पाता है। जिसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं होता, जो अपनी शक्ति को नहीं जानता, उसकी सहायता कोई भी नहीं कर सकता। अगर काम करने की उपयोगिता है और क्षमता भी है, तो वह शक्ति सृजनात्मक हो जाती है। आज दुनिया में सुविधावाद और भौतिकवाद बढ़ रहा है। जितना जीवन में निष्काम भाव होगा उतनी ही सृजनात्मक शक्ति भी होगी, दोनों का बराबर योग होता है। अब सवाल यह उठता है कि सृजनात्मक शक्ति का विकास कैसे करें? सृजनात्मक शक्ति का विकास करने के लिए अनेक उपाय हैं। शक्ति के जागरण के अनेक साधन हो सकते हैं, पर उन सब में सबसे शक्तिशाली साधन है ध्यान। हमारी बिखरी हुई चेतना, विक्षिप्त चेतना काम नहीं देती। ध्यान हमारे विक्षिप्त चित्त को एकाग्र बना देता है। शिवयोग में भी कहा गया है कि ‘खुशी ...

आध्यात्मिक चेतना जगाने के लिए क्या करें?

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  आध्यात्मिक चेतना जगाने के लिए क्या करें? मन की सहायता से परम-परमेश्वर तक पहुंचने में हम असमर्थ हैं। मन को बार-बार निराश होना पड़ता है| अगर उस परमेश्वर तक पहुंचने की कोशिश करते हैं तो आपकी कल्पना शक्ति की पहुंच से बाहर है। आप किसी भी सामान्य ज्ञान के माध्यम से उस तक नहीं पहुंच सकते। परम ब्रह्म की प्राप्ति मन से नहीं हो सकती और न ही वाणी से संभव है। ब्रह्म आनंद में स्थापना के साथ मन, बुद्धि, शब्द सब खो जाते हैं, क्योंकि वह स्वयं एक ही सुख है - परम आनंद। अपनी चेतना की प्रफुल्लित शक्ति के माध्यम से व्यक्ति को उसमें स्थापित होना होता है। उनके पास पहुंचने के बाद, मन के न होने के कारण, छह शत्रु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या) भी नहीं रह सकते। साधक तब सभी भयों से मुक्त हो जाता है। सर्वोच्च चेतना अदृश्य है। कोई अपने अंगों के माध्यम से अत्यंत विशाल और अत्यंत सूक्ष्म चीज को नहीं समझ सकता। उन्हें देखने या समझने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों की मदद लेनी पड़ती है। इसी तरह सर्वोच्च चेतना दिखाई नहीं देती, उस परम ब्रह्म को देखने के लिए आध्यात्मिक दृष्टि की आवश्यकता होती है। ये दृष्टि आध्यात्म...

Dealing With Anger Management Issues

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  Dealing With Anger Management Issues There are many internal factors such as mental instability, depression, any kind of addiction or tension that can lead to anger. External factors such as stress, anxiety, financial, personal or professional issues that can lead to anger. Anger destroys the soul and personality of the person and corrodes him from within. Uncontrolled anger can lead to destruction of self, relationships and situations. Anger management is essentially about practices to decrease both your emotional feelings and the psychological trigger that anger causes. Deep breathing, Meditation, Yoga and Kriyas, Physical Exercise, spending quiet introspective time with oneself and loved ones, nursing a hobby or sport are excellent ways to deal with anger management issues. Cognitive restructuring – changing the way you think, problem solving, better communication, humour, changing your environment are some other ways to manage anger issues. Learn to manage your reactions and ...

क्या ईश्वर धार्मिक लोगों की परीक्षा लेता है?

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क्या ईश्वर धार्मिक लोगों की परीक्षा लेता है? समाज में लोगों के बीच एक धारणा बनी चली आ रही है कि जब से वह साधना करने लगे हैं या अध्यात्म की राह पर चलने लगे हैं, तब से उनके जीवन में ज्यादा कष्ट और दुःख उनको मिलने लगे हैं। वास्तव में यह सब हमारे मन की भ्रांतियां हैं, और कुछ भी नहीं। हां, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सदमार्ग या ईश्वर के दिखाए मार्ग पर चलने वाले लोगों की परीक्षा ईश्वर जरूर लेता है। लेकिन उनको ज्यादा कष्ट मिलने लगा है यह हमारे मन का मात्र विकार है। क्योंकि हमारे जीवन में जो कष्ट-दुःख हमें मिलते हैं, वे सब हमारे संचित कर्मों के आधार पर मिलते हैं। जब हम ईश्वर की शरण में जाते हैं या साधना-अध्यात्म के मार्ग से जुड़ते हैं तो हम अपने संचित कर्मों का नाश करते हैं। जिससे परिणाम स्वरूप हमको जीवन में जहां अत्यधिक आर्थिक व शारीरिक हानि मिलने वाली होती है, उसे हमारे द्वारा की जाने वाली साधना द्वारा उसका स्वरूप छोटा हो जाता है।  क्योंकि वो कर्म हमने अनंत से जुड़े बगैर कर लिए थे। जिसके कारण हमने कर्मों की परतें अपने चारों ओर पैदाकर ली थीं। उन कर्मों में बंधकर जीवन में कष्ट और...

क्या आध्यात्म और संसार में संतुलन संभव है?

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  क्या आध्यात्म और संसार में संतुलन संभव है? अध्यात्म मनुष्य को स्थायी आंतरिक आनंद प्रदान करता है। हमारी आवश्यकता से सांसारिक होना आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति में एक बड़ा अवरोध है। सांसारिकता में घिरे रहने से हमारे इस लोक और परलोक दोनों बिगड़ सकते हैं। सांसारिकता मनुष्य को पूर्णतः भौतिकवादी बना देती है। हालांकि ऐसी आशंकाएं भी व्यक्त की जाती हैं कि आध्यात्मिकता पर ज्यादा जोर देने से सांसारिक व्यवहारों में परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं, पर बुद्धिमान व्यक्ति को इसमें कोई कठिनाई नहीं आती। आध्याात्मिक होने का अर्थ यह नहीं है कि मनुष्य अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ ले। उसे अपने कर्तव्यों का पालन और जिम्मेदारियों का निर्वाहन करते हुए आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। हम कितना भी ज्ञान प्राप्त कर लें पर जब तक हमें उन नियमों का ज्ञान नहीं है, जो मनुष्य के मनोवेग, भावनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण करते हैं तब तक हमारा ज्ञान अधूरा ही है।  मनुष्य को बाहरी वस्तुओं में ज्यादा आनंद मिलता है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इन सबसे ऊपर उठकर सूक्ष्मतर तत्वों की प्राप्त...

आध्यात्म क्या है?

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  आध्यात्म क्या है? भौतिक जीवन में सुख और आनंद प्राप्त करने का एक मात्र रास्ता है, जिसे हम अध्यात्म कहते हैं। अध्यात्म वह चीज है जो भौतिक शरीर के भीतर निवास करती है, जिसके द्वारा मनुष्य को सिद्धियां मिलती हैं। भौतिक शक्ति और आध्यात्मिक शक्ति को जब हम मिलाते हैं, तो नए किस्म की चीजें मिलती हैं। जिसे हम ‘‘विभूतियां‘‘ कहते हैं। विभूतियां वो चीजें हैं जो दिखलाई नहीं पड़ती हैं। हमारी नसों में-नाड़ियों में जो शक्ति है, उसे हम दिखा नहीं सकते। हम नसों को दिखा सकते हैं, किंतु उनकी शक्ति को नहीं। हम अपनी चेतना को भी नहीं दिखा सकते। वह भी उसी प्रकार की चीज है। ब्रह्माण्ड में जो चीजें विद्यमान हैं, वे सारी की सारी चीजें हमारे शरीर में भी विद्यमान हैं। इतना ही नहीं, हमारे अंदर दिव्यशक्तियां भी विद्यमान हैं। दिव्यशक्ति किसे कहते हैं? यह देवताओं की शक्ति है जो हमारे अंग-अंग में विद्यमान है। इसके अलावा हमारे भीतर परमात्मा विद्यमान हैं। परमात्मा क्या है? यह आस्था है, संवेदना है। हम अपनी चेतना को आस्था एवं संवेदना के साथ जोड़ लें, तो हम सारी खुशी प्राप्त कर सकते हैं। हमारे अंदर ‘‘शिवोअहं‘‘ की भावना आ स...

कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है?

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  कुण्डलिनी जागृत होने से क्या होता है? हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुण्डलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ है। जब कुण्डलिनी शक्ति ऊपर की ओर गति करती है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र यानि सहस्रार तक पहुंचना होता है, लेकिन यदि व्यक्ति संयम और ध्यान छोड़ देता है तो यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर अवस्थित हो सकता है। जब कुण्डलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है। साधना की तीव्रता, शक्ति की गहनता और साधक के कर्म क्षय के अनुसार, कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर स्थित हो जाती है। ध्यान साधना की निरंतरता से कुंडलिनी शक्ति के ऊर्ध्व गमन का यह क्रम निरंतर चलता रहता है। कुण्डलिनी शक्ति जिस चक्र पर जाकर रुकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक उर्जा को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वस्थ और स्वच्छ कर देती है। कुण्डलिनी शक्ति के जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर होता जाता है और उसका रूझान आध्यात्म और ईश्वर के रहस्यों की ओर होने लगता है। ...

Holistic Healing

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  Holistic Healing Holistic Healing essentially means healing someone by focusing on the person as a whole, rather than treating a specific ailment or health condition. Holistic healing treats the root cause of the disease, that is psychosomatic factors and unwanted negative emotions such as resentment, fear, greed, anger, jealousy, hatred etc. By developing a harmony between the body, mind and soul, health issues can be prevented and everyone can live a happy, healthy, whole, fulfilled and complete life. This natural way of healing has zero side-effects and is long-lasting. Holistic Healing increases physical, mental, emotional, social and spiritual health and well-being. There is increased emphasis on prevention of diseases, which is not available in medical textbooks. Holistic Healing is about self-awareness and the journey towards the ultimate destination–self-realization. Meditation, Yoga and Kriyas, practicing a natural and simple lifestyle, selfless service activities and Pr...

क्या संन्यास की राह में गृहस्थ जीवन बाधक है?

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  क्या संन्यास की राह में गृहस्थ जीवन बाधक है? प्रत्येक आत्माधारी जीव का मूल स्वभाव ही अध्यात्म है। अपनी आत्मा के प्रति जागरूक होने की जिज्ञासा हर जीव में जन्म-जन्मान्तर तक रहती है। जिसके कारण काल चक्र की यात्रा पूरी करने के क्रम में अंतिम जागृत होना स्वाभाविक है। अतः स्वभाव से आध्यात्मिक होने के लिए सांसारिक गतिविधियों, क्रियाकलापों आदि से संन्यास लेने का कोई नियम नहीं है। ब्रह्माण्ड में जीवन के रहस्य को समझने का एकमात्र मार्ग अध्यात्म ही है। इस मार्ग पर चलने के लिए स्वयं का भाव ही पर्याप्त है। आगे का मार्ग परमात्मा की कृपा से स्वयं प्रकाशित होता चला जाता है। निसंदेह अध्यात्मिक उपलब्धि का अंतिम पड़ाव संन्यास जरूर है लेकिन उस पड़ाव तक पहुंचने के काबिल बनने के लिए हमें ज्ञानेन्द्रियों (जीभ, नाक, कान, आंख और त्वचा) और कर्मेन्द्रियों (हाथ, पैर, लिंग, गुदा, वाणी) को उनके विषयों से विमुख करने का अभ्यास होना आवश्यक है। जो कि भौतिक जीवन के विषयों के साथ रहते हुए ही कर पाना संभव है। क्योंकि जब विषयों से सामना होगा, तभी उनसे दूरी बनाने का अभ्यास करना संभव होगा। इसके लिए आध्यात्मिक होने की शु...

What is Shiv Yog?

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      What is Shiv Yog? ‘Shiv’ represents the Supreme Consciousness and ‘Yog’ means the union. Shiv Yog is the process of merging with the Infinite and emerging infinite. Shiv Yog deems God as the Supreme, above all forms and names. Through various meditation, selfless service and chanting modalities, Shiv Yog provides easy and practical ways to burn our karmic layers and improve your health and life. Shiv Yog offers a scientific approach to living life 200% and fulfil the purpose of taking human birth. Shiv Yog is a lifestyle, a mindset and a journey to live a blissful, healthy and fulfilling life.  

नवमी: मां सिद्धिदात्री

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    नवमी: मां सिद्धिदात्री मां दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रि-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन पूर्ण विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। यहां तक कि भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की सहयता से सिद्धियों प्राप्त की थीं। मां सिद्धिदात्री की साधना देव, गंधर्व, असुर, यक्ष और सिद्धों ने भी की है। जब मां सिद्धिदात्री शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुईं, तब भगवान शिव को अर्ध-नारीश्वर का नाम दिया गया। माता के स्वरूप की साधना करने से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करते हुए मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। #NavratriWishes #maasiddhratri #navaratri2022 #meditation #sadhna